MAZAR BANANA , ZYRAT KARNA AUR MAZAR PAR CHADAR CHADHANE KI SABOOT IN HINDI AND ENGLISH

 

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*हिन्दी/hinglish*                        *सुन्नी और मज़ार*

*ⓩ  किसी की क़ब्र पर इमारत बना देना ही मज़ार कहलाता है,अल्लाह के मुक़द्दस बन्दों की मज़ार बनाना वहां जाना और उनसे मदद लेना जायज़ है,पढ़िये*

*मज़ार बनाना*

(1)


तो बोले उनकी ग़ार पर इमारत बनाओ उनका रब उन्हें खूब जानता है वह बोले जो इस काम मे ग़ालिब रहे थे कसम है कि हम तो उन पर मस्जिद बनायेंगे

📕 पारा 15,सूरह कहफ,आयत 21

*तफसीर* - असहाबे कहफ 7 मर्द मोमिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की उम्मत के लोग थे बादशाह दक़्यानूस के ज़ुल्म से तंग आकर ये एक ग़ार मे छिप गये जहां ये 300 साल तक सोते रहे 300 साल के बाद जब ये सोकर उठे और खाने की तलाश मे बाहर निकले तो उनके पास पुराने सिक्के देखकर दुकानदारो ने उन्हे सिपाहियों को दे दिया उस वक़्त का बादशाह बैदरूस नेक और मोमिन था जब उस को ये खबर मिली तो वो उनके साथ ग़ार तक गया और बाकी तमाम लोगो से भी मिला असहाबे कहफ सबसे मिलकर फिर उसी ग़ार मे सो गये जहां वो आज तक सो रहें हैं हर साल दसवीं मुहर्रम को करवट बदलते हैं हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर मे उठेंगे और आपके साथ मिलकर जिहाद करेंगे बादशाह ने उसी ग़ार पर इमारत बनवाई और हर साल उसी दिन वहां तमाम लोगों को जाने का हुक्म दिया

📕 तफसीर खज़ाएनुल इर्फान,सफह 354

*मज़ार पर जाना*

(2) हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसललम इरशाद फरमाते हैं कि मैंने तुम लोगों को क़ब्रों की ज़ियारत से मना किया था अब मैं तुम को इजाज़त देता हूं कि क़ब्रों की ज़ियारत किया करो

📕 मुस्लिम,जिल्द 1,हदीस 2158

(3) खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम हर साल शुहदाये उहद की क़ब्रो पर तशरीफ़ ले जाते थे और आपके बाद तमाम खुल्फा का भी यही अमल रहा

📕 शामी,जिल्द 1,सफह 604
📕 मदारेजुन नुबुव्वत,जिल्द 2,सफह 135

*ⓩ  जब एक नबी अपने उम्मती की क़ब्र पर जा सकता है तो फिर एक उम्मती अपने नबी की या किसी वली की क़ब्र पर क्यों नहीं जा सकता*

*मज़ार पर हाज़िरी*

(4) आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत फरमाते हैं कि साहिबे मज़ार के पांव की जानिब से दाखिल हो और मज़ार से 4 हाथ पीछे हटकर खड़ा हो हाथ बांधकर जो कुछ सही अदायगी से पढ़ सकता हो पढ़े और उसका सवाब तमाम अम्बिया व औलिया सिद्दिक़ीन व सालेहीन व साहिबे मज़ार और तमाम मुसलमान मुर्दों को बख्शे और इसी तरह वापस निकल आये,ना तो मज़ार को हाथ लगाये और ना चादर चूमे लेकिन अगर कोई चूम भी लेता है तो ये कोई नाजायज़ो हराम भी नहीं है,और मज़ार पर औरतों का जाना बिल्कुल नाजायज़ो हराम है बल्कि फरमाते हैं कि जब तक वो औरत अपने घर वापस नहीं आ जाती तब तक अल्लाह उसके फरिश्ते और साहिबे मज़ार सब की लानत में गिरफ्तार रहती है

📕 अलमलफूज़,हिस्सा 2,सफह 107

*ⓩ  मज़ार पर मांगने का 3 तरीका है पहला ये कि मौला तआला की बारगाह में युं अर्ज़ करे कि ऐ मौला मैं तुझसे इस वली के सदक़े में फलां हाजत तलब करता हूं मेरी हाजत पूरी फरमा दूसरा ये कि साहिबे मज़ार से युं अर्ज़ करे कि ऐ अल्लाह के मुक़द्दस बन्दे मेरी फलां इल्तिजा रब की बारगाह में पेश कर दीजिये कि मेरी हाजत पूरी फरमा दे और तीसरा तरीक़ा वो है जिस पर बन्दे का अमल है वो ये कि सीधे सीधे साहिबे मज़ार की बारगाह में युं इस्तेगासा पेश करे और कहे कि ऐ अल्लाह के वली मेरी फलां हाजत पूरी फरमाइये ऐसा इसलिए क्योंकि अल्लाह ने अपने वलियों को पूरी क़ुदरत दे रखी है वो जिसे जो चाहे अता कर सकते हैं,और अगर डायरेक्ट वली से मांगने की बात किसी को नहीं पच रही हो तो वो इस मिसाल से समझ ले,मान लीजिये कि आपको 10,000 रू रूपये की ज़रूरत है आप अपने अब्बा के पास पहुंचे और युं कहें कि ऐ मौला मुझे 10,000 रू की ज़रूरत है मेरे बाप से मुझे 10,000 दिलवादे या फिर युं कहें कि ऐ अब्बा मुझे 10,000 रू की ज़रूरत है आप रब से कह दीजिए कि मुझे 10,000 रू अता कर दिया जाए या फिर युं कहेंगे कि अब्बा मुझे फलां काम आ गया है मुझे 10,000 रू चाहिए,ख्याल रहे कि अगर वली गैरुल्लाह है और गैरुल्लाह से कुछ मांगना शिर्क है तो फिर अपने बाप से मां से भाई बहन से दोस्तों अज़ीज़ों से भी डायरेक्ट मांगना शिर्क होना चाहिए क्योंकि वो भी गैरुल्लाह हैं या फिर वहाबी उनको खुदा समझकर अपनी ज़रूरत की चीज़ें मांगता होगा जब ही तो बाप से मांगना शिर्क नहीं और वली से मांगना शिर्क है और अगर ये शिर्क नहीं है तो वो भी शिर्क नहीं है,वलियों से डायरेक्ट मांगने की बहुत सारी रिवायतें मौजूद है उसके लिए कभी अलग से पोस्ट बनाऊंगा इन शा अल्लाह तआला*

*मज़ार पर चादर चढ़ाना*

(5) खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की मज़ारे अक़दस पर सुर्ख यानि लाल रंग की चादर डाली गई थी

📕 सही मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 677

(6) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम एक जनाज़े मे शामिल हुए बाद नमाज़ को एक कपड़ा मांगा और उसकी क़ब्र पर डाल दिया

📕 तफसीरे क़ुर्बती,जिल्द 1,सफह 26

*मज़ार पर फूल डालना*

(7) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का गुज़र दो क़ब्रो पर हुआ तो आपने फरमाया कि इन दोनों पर अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े गुनाह की वजह से नहीं बल्कि मामूली गुनाह की वजह से,एक तो पेशाब की छींटों से नहीं बचता था और दूसरा चुगली करता था,फिर आपने एक तार शाख तोड़ी और आधी आधी करके दोनो क़ब्रों पर रख दी और फरमाया कि जब तक ये शाख तर रहेगी तस्बीह करती रहेगी जिससे कि मय्यत के अज़ाब में कमी होगी

📕 बुखारी,जिल्द 1,हदीस 218

*ⓩ  तो जब तर शाख तस्बीह पढ़ती है तो फूल भी पढ़ेगा और जब इनकी बरक़त से अज़ाब में कमी हो सकती है तो एक मुसलमान के तिलावतो वज़ायफ से तो ज़्यादा उम्मीद की जा सकती है और मज़ार पर यक़ीनन अज़ाब नहीं होता मगर फूलों की तस्बीह से साहिबे मज़ार का दिल ज़रूर बहलेगा*

*मुर्दो का सुनना*

(8) तो सालेह ने उनसे मुंह फेरा और कहा एै मेरी क़ौम बेशक मैंने तुम्हें अपने रब की रिसालत पहुंचा दी

📕 पारा 8,सुरह एराफ,आयात 79

*तफसीर* - हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम क़ौमे समूद की तरफ नबी बनाकर भेजे गए,क़ौमे समूद के कहने पर आपने अपना मोजज़ा दिखाया कि एक पहाड़ी से ऊंटनी ज़ाहिर हुई जिसने बाद में बच्चा भी जना,ये ऊंटनी तालाब का सारा पानी एक दिन खुद पीती दुसरे दिन पूरी क़ौम,जब क़ौमे समूद को ये मुसीबत बर्दाश्त न हुई तो उन्होंने इस ऊंटनी को क़त्ल कर दिया,तो आपने उनके लिए अज़ाब की बद्दुआ की जो कि क़ुबूल हुई और वो पूरी बस्ती ज़लज़ले से तहस नहस हो गयी,जब सारी क़ौम मर गई तो आप उस मुर्दा क़ौम से मुखातिब होकर अर्ज़ करने लगे जो कि ऊपर आयत में गुज़रा

📕 तफसीर सावी,जिल्द 2,सफह 73

(9) जंगे बद्र के दिन हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने बद्र के मुर्दा कुफ्फारों का नाम लेकर उनसे ख़िताब किया,तो हज़रत उमर फारूक़े आज़म ने हैरत से अर्ज़ किया कि क्या हुज़ूर मुर्दा बेजान जिस्मों से मुखातिब हैं तो सरकार सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि 'एै उमर खुदा की कसम ज़िंदा लोग इनसे ज़्यादा मेरी बात को नहीं समझ सकते'

📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 183

*ⓩ  ज़रा सोचिये कि जब काफिरों के मुर्दो में अल्लाह ने सुनने की सलाहियत दे रखी है तो फिर अल्लाह के मुक़द्दस बन्दे क्यों हमारी आवाज़ों को नहीं सुन सकते*

*क़ब्र वालों का मदद करना*

(10) और अगर जब वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायेंगे

📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64

(11) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम की वफात के बाद एक आराबी आपकी मज़ार पर हाज़िर हुआ और रौज़ये अनवर की खाक़ अपने सर पर डाली और क़ुरान की यही आयत पढ़ी फिर बोला कि हुज़ूर मैने अपनी जान पर ज़ुल्म किया अब मै आपके सामने अपने गुनाह की माफी चाहता हूं हुज़ूर मेरी शफाअत कराइये तो रौज़ये अनवर से आवाज़ आती है कि जा तेरी बखशिश हो गई

📕 तफसीर खज़ाएनुल इर्फान,सफह 105

(12) हज़रते इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं जब भी मुझे कोई हाजत पेश आती है तो मैं हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र पर आता हूं,2 रकत नफ्ल पढता हूं और रब की बारगाह में दुआ करता हूं तो मेरी हाजत बहुत जल्द पूरी हो जाती है

📕 रद्दुल मुख्तार,जिल्द 1,सफह 38

*वहाबी और मज़ार*

*ⓩ  एक सवाल के जवाब पर मौलवी रशीद अहमद गंगोही लिखते हैं कि*

(13) क़ुबूरे औलिया पर जाना और उनसे फैज़ हासिल करना इसमें कुछ हर्ज़ नहीं

📕 फतावा रशीदिया,जिल्द 1,पेज 223

(14) मौलाना रफ़ी उद्दीन के साथ हज़रत (थानवी) ने सरे हिन्द पहुंचकर शेख मुजद्दिद उल्फ सानी के मज़ार पर हाज़िरी दी

📕 हयाते अशरफ,सफह 25

*ⓩ  थानवी ने लिखा*

(15) दस्तगिरी कीजिये मेरे नबी
     कशमकश में तुम ही हो मेरे वली

📕 नशरुत्तबीब फि ज़िक्रे नबीईल हबीब,सफह 164

*ⓩ  मौलवी आरिफ सम्भली ने लिखा है कि*

(16) पस बुज़ुर्गो की अरवाह से मदद लेने के हम मुंकिर नहीं

📕 बरैली फितने का नया रूप,सफह 139

*ⓩ  मौलवी हुसैन अहमद टांडवी लिखता है कि*

(17) हमें जो कुछ मिला इसी सिलसिलाए चिश्तिया से मिला,जिसका खाये उसी का गाये

📕 शेखुल इस्लाम नम्बर,सफह 13

*ⓩ  इतना सब कुछ पढ़ने के बाद आज के वहाबियों को चाहिये कि सुन्नी से मुनाज़रा करना छोड़ें और फौरन अपने दोगले अक़ायद से तौबा करें और सच्चे दिल से मज़हबे अहले सुन्नत वल जमात यानि मसलके आलाहज़रत पर क़ायम हो जायें*

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*ⓩ  Kisi ki qabr par imaarat bana dena hi mazaar kahlaata hai,aur ALLAH ke muqaddas bando ki mazaar banana wahan jaana aur unse madad lena jayaz hai,padhiye*

*MAZAAR BANANA*

1. To bole unki gaar par imaarat banao unka rub unhe khoob jaanta hai wo bole jo is kaam me gaalib rahe the kasam hai ki hum to un par masjid banayege

📕 Paara 15,surah kahaf,aayat 21

*Tafseer* - Ashaabe kahaf 7 mard momin hazrat EESA alaihissalam ki ummat ke log the,baadshah daqyanoos ke zulm se tang aakar ye ek gaar me chhip gaye jahan ye 300 saal tak sote rahen,300 saal ke baad jab ye sokar uthe aur khaane ki talaash me baahar nikle to unke paas purane sikke dekhkar dukandaro ne unhein sipahiyon ko de diya,us waqt ka baadshah baidroos nek aur momin tha jab usko ye khabar mili to wo unke saath gaar tak gaya aur baaki tamam logon se bhi mila,ashaabe kahaf sabse milkar fir usi gaar me so gaye jahan wo aaj tak so hi rahe hain,har saal daswi muharram ke din karwat badalte hain aur hazrat MENHDI raziyallahu taala anhu ke daur me uthenge aur aapke saath milkar jihaad karenge,baadshah ne unki gaar par imaarat yaani masjid banwayi aur har saal usi din wahan logon ko jaane ka hukm diya

📕 Tafseer khazayenul irfan,safah 354

*MAZAAR PAR JAANA*

2.  Huzoor sallallaho taala alaihi wasalllam irshaad farmate hain ki maine tum logon ko qabron ki ziyarat se mana kiya tha ab main tum ko ijazat deta hoon ki qabron ki ziyarat kiya karo

📕 Muslim,jild 1,hadis 2158

3. Khud huzoor sallallaho taala alaihi wasallam har saal shuhdaye uhad ki qabro par tashrif le jaate aur baad tamam khulfa ka bhi yahi amal raha

📕 Shaami,jild 1,safah 604
📕 Madarejun nubuwat,jild 2,safah 135

*ⓩ  Zara sochiye ki jab ek nabi apne ummati ki qabr par ja sakta hai to fir ek ummati kisi nabi ya wali ki qabr par kyun nahin ja sakta*

*MAZAAR PAR HAAZIRI*

4. Aalahazrat azimul barkat farmate hain ki saahibe mazaar ki paanv ki jaanib se daakhil ho aur mazaar se 4 haath peechhe hatkar khada ho haath baandhkar jo kuchh sahi adaygi se padh sakta ho padhe aur uska sawab tamam ambiya wa auliya siddiqeen wa saaleheen wa saahibe mazaar aur tamam musalman murdon ko bakhshe aur isi tarah wapas nikal aaye,na to mazaar ko haath lagaye aur na chaadar choome lekin agar koi choom bhi leta hai to ye koi najayzo haraam bhi nahin hai,aur mazaar par aurton ka jaana bilkul najayzo haraam hai balki farmate hain ki jab tak wo aurat apne ghar waapas nahin aa jaati wo ALLAH uske farishte aur saahibe mazaar sab ki laanat me giraftaar rahti hai

📕 Almalfooz,hissa 2,safah 107

*ⓩ  Mazaar par maangne ka 3 tariqa hai pahla ye ki maula taala ki baargah me yun arz kare ki ai maula main tujhse is wali ke sadqe me falan haajat talab karta hoon meri haajat poori farma doosra ye ki saahibe mazaar se yun arz kare ki ai ALLAH ke muqaddas bande meri falan iltija rub ki baargah me pesh kar dijiye ki meri haajat poori farma de aur teesra tariqa wo hai jispar bande ka amal hai wo ye ki seedhe seedhe saahibe mazaar ki baargah me yun istegasa pesh kare aur kahe ki ai ALLAH ke wali meri falan haajat poori farmaiye aisa isliye kyunki ALLAH ne apne waliyon ko poori qudrat de rakhi hai wo jise jo chahen ata kar sakte hain,aur agar direct wali se maangne ki baat kisi ko nahin pach rahi ho to wo is misaal se samajh le,maan lijiye ki aapko 10,000 rs rupye ki zarurat hai aap apne abba ke paas pahunche aur yun kahen ki ai maula mujhe 10,000 rs ki zarurat hai mere baap se mujhe 10,000 dilwade ya phir yun kahenge ki ai abba mujhe 10,000 rs ki zarurat hai aap rub se kah dijiye ki mujhe aapke zariye 10,000 rs ata kar diya jaaye ya phir yun kahenge ki abba mujhe falan kaam aa gaya hai mujhe 10,000 rs chahiye,khayal rahe ki agar wali gairullah hai aur gairullah se kuchh maangna shirk hai to phir apne baap se maa se bhai bahan se dosto azizon se bhi maangna shirk hona chahiye kyunki wo bhi gairullah hain ya phir wahabi unko khuda samajhkar apni zarurat ki cheezein maangta hoga jab hi to baap se maangna shirk nahin aur wali se maangna shirk hai aur agar ye shirk nahin hai to wo bhi shirk nahin hai,waliyon se direct maangne ki bahut saari riwaytein maujood hai uske liye kabhi alag se post banaunga in sha ALLAH taa'la*

*MAZAAR PAR CHADAR CHADHANA*

5. Khud huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ki mazaare aqdas par surkh yaani laal rang ki chaadar daali gayi thi

📕 Sahi muslim,jild 1,safah 677

6. Huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ek janaze me shaamil hue baad namaz ko ek kapda maanga aur uski qabr par daal diya

📕 Tafseer qurbati,jild 1,safah 26

*MAZAAR PAR PHOOL DAALNA*

7. Huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ka guzar do qabro par hua to aapne farmaya ki in dono par azaab ho raha hai aur kisi bade gunaah ki wajah se nahin balki mamuli gunah ki wajah se,ek to peshab ki chhinto se nahin bachta tha aur doosra chugli karta tha,fir aapne ek tar shaakh todi aur aadhi aadhi karke qabr par rakh di aur farmaya ki jab tak ye shaakh tar rahegi tasbeeh karti rahegi jisse ki mayyat ke azaab me kami hogi

📕 Bukhari,jild 1,hadis 218

*ⓩ  To jab tar shaakh tasbeeh padhti hai to phool bhi padhega aur jab inki barqat se azaab me kami ho sakti hai to ek musalman ke tilawato wazayaf se to zyada ummeed ki ja sakti hai aur mazaar par yaqinan azaab nahin hota magar phoolon ki tasbeeh se saahibe mazaar ka dil zaroor bahlega*

*MURDON KA SUNNA*

8. To saaleh ne unse munh fera aur kaha ai meri qaum beshak maine tumhe apne rub ki risalat pahuncha di

📕 Paara 8,surah eraaf,aayat 79

*Tafseer* - Hazrat SAALEH alaihissalam qaume samood ki taraf nabi banakar bheje gaye,qaume samood ke kahne par aapne apna mojza dikhaya ki ek pahaadi se oontni zaahir ki jisne baad me bachcha bhi jana,ye oontni taalab ka saara paani ek din khud peeti aur doosre din poori qaum,jab qaume samood ko ye musibat bardasht na huyi to unhone is oontni ko qatl kar diya,to aapne liye azaab ki baddua ki jo ki qubool huyi aur wo poori basti zalzale se tahas nahas ho gayi,jab saari qaum mar gayi to aap us murda qaum se mukhatib hokar arz karne lage jo ki oopar aayat me guzra

📕 Tafseer saavi,jild 2,safah 73

9. Jange badr ke din huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ne badr ke murda kuffaron ka naam lekar unse khitaab kiya to hazrat UMAR FAROOQ raziyallahu taala anhu ne hairat se arz kiya ki kya huzoor bejaan jismo se mukhatib hain to huzoor sallallaho taala alaihi wasallam farmate hain ki "ai umar khuda ki kasam zinda log inse zyada meri baat ko nahin samajh sakte

📕 Bukhari,jild 1,safah 183

*ⓩ  Sochiye ki jab kaafiro ke murdo me ALLAH ne sunne samajhne ki salahiyat de rakhi hai to fir ALLAH ke muqaddas bande hamari aawazo ko kyun nahin sun sakte*

*QABR WAALO KA MADAD KARNA*

10. Aur agar jab wo apni jaano par zulm karen to ai mahboob tumhare huzoor haazir ho fir ALLAH se maafi chahen aur rasool unki shafat farmayen to zaroor ALLAH ko bahut tauba qubool karne waala meharban payenge

📕 Paara 5,surah nisa,aayat 64

11. Huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ki wafaat ke baad ek aaraabi aaapki mazaar par haazir hua aur rauzaye anwar ki khaaq par apne sar par daali aur quran ki yahi aayat padhi aur bola ki huzoor maine apni jaan par zulm kiya ab main aapke saamne apne gunaah ki maafi chahta hoon huzoor meri shafat farmaiye to rauzaye anwar se aawaz aati hai ki ja teri bakhshish ho gayi

📕 Tafseer khazayenul irfan,safah

12. Hazrate imaam shafayi raziyallahu taala anhu farmate hain jab bhi mujhe koi haajat pesh aati hai to main hazrate imaame aazam raziyallahu taala anhu ki qabr par aata hoon,2 rakat nafl padhta hoon aur rub ki baargah me dua karta hoon to meri haajat bahut jald poori ho jaati hai

📕 Raddul mukhtar,jild 1,safah 38

*WAHAABI AUR MAZAAR*

*ⓩ  Ek sawal ke jawab par maulvi rasheed ahmad gangohi likhte hain ki*

13. Qubure auliya par jaana aur unse faiz haasil karna isme kuchh harz nahin hai

📕 Fatawa rashidiya,jild 1,safah 223

14. Maulana rafi uddin ke saath hazrat (thanvi) ne sare hind pahunchkar shaikh mujaddid ulf saani ke mazaar par haaziri di

📕 Hayate ashraf,safah 25

*ⓩ  Thanvi ne likha ki*

15. dastgiri kijiye mere nabi
      kashmakash me tum hi ho mere wali

📕 Nashruttabib fi zikre nabiyil habib,safah 164

*ⓩ  Maulvi aarif sambhli ne likha hai ki*

16. Pas buzurgo ki arwaah se madad lene ke ham munkir nahin

📕 Baraily fitne ka naya roop,safah 139

*ⓩ  Maulvi husain ahmad tandvi likhta hai ki*

17. Hamein jo kuchh mila hai isi silsilaye chishtiya se mila hai so jiska khaaye usi ka gaaye

📕 Shekhul islam number,safah 13

*ⓩ  Itna sab kuchh padhne ke baad aaj ke wahabiyon ko chahiye ki sunni se munazra karna chhodein aur fauran apne dogle aqayad se tauba karen aur sachche dil se mazhabe ahle sunnat wal jamaat yaani maslake AALAHAZRAT par qaayam ho jaayen*

     
     Credir- NAUSHAD AHMAD "ZEB" RAZVI*
                        *ALLAHABAD*

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