GHAUSE AZAM RADIYALLAHU TAALA ANHU

*ग़ौसे आज़म-5*

*वाह क्या मर्तबा ऐ ग़ौस है बाला तेरा*
*ऊंचे ऊंचो के सरों से क़दम आला तेरा*

*अब ऊंचे ऊंचो के सरों से हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का क़दम आला कैसे हो गया ये भी मुलाहज़ा फरमा लें,मेरे आक़ाये नेअमत सरकारे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं*

*14*  जब सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पैदा हुए तो आपके दोनों कांधो के बीच मुहरे नुबूवत की तरह ही हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के कदमों के निशान मौजूद थे जो शबे मेराज की निशानी थी वाक़िया कुछ युं हुआ कि जब शबे मेराज हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए जिब्रीले अमीं अलैहिस्सलातो वस्सलाम बुराक़ लेकर हाज़िर हुए जो कि चमकती उचक ले जाने वाली बिजली से भी ज़्यादा शताब रु था और उसके पांव का नाल आंखों में चकाचौंध डालने वाला हिलाल और उसकी कीलें जैसे रौशन तारे हुज़ूर की सवारी के लिए उसे क़रार व सुकून ना होता था,सय्यदे आलम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उससे सबब पूछा तो बोला मेरी जान हुज़ूर की खाक़े नाल पर क़ुर्बान मेरी आरज़ू ये है कि हुज़ूर मुझसे वादा फरमायें कि रोज़े क़यामत मुझी पर सवार होकर जन्नत में तशरीफ ले जायेंगे,हुज़ूर ने फरमाया कि ऐसा ही होगा फिर बोला कि हुज़ूर मेरी गर्दन पर अपना दस्ते मुबारक लगा दें कि क़यामत के दिन मेरे लिए अलामत हो हुज़ूर ने क़ुबूल फरमा लिया अब दस्ते अक़दस के लगते ही उसे वो फरहत व शादमानी हुई कि उसकी रूह फूली ना समाई और उसका जिस्म फूलकर 40 हाथ ऊंचा हो गया,हुज़ूर पुरनूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम एक हिक़मत निहानी अज़्ली के बाइस एक लम्हा सवारी में देर हुई कि फौरन आलमे अरवाह से हुज़ूर सय्यदना ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की रूहे मुताहर हाज़िर हुई और अर्ज़ की कि ऐ मेरे आक़ा अपना क़दम मुबारक मेरी गर्दन पर रखकर सवार हों हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की गर्दन पर क़दम रखकर सवार हो गए और इरशाद फरमाया कि *मेरा क़दम तेरी गर्दन पर और तेरा क़दम तमाम औलिया की गर्दनों पर*

📕 शरह हिदायके बख्शिश,सफह 254 
📕 सुल्तानुल अज़कार फी मनाक़िबिल अबरार,सफह 55

*15* जब सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हलब की एक खानकाह में ये फरमाया कि *मेरा ये क़दम तमाम औलिया की गर्दनो पर है* तो उस महफिल में सबसे पहले हज़रत अली बिन हैती ने अपनी गर्दन पर आपका क़दम रख दिया फिर तमाम गरदनें खुद बखुद खिंचकर आपके क़दम के नीचे आ गई,उस वक़्त पूरी रूए ज़मीन पर जो भी वली मौजूद थे सभी ने आपका ये क़ौल समाअत किया और सरों को झुका दिया मगर सरकार ग़रीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जो कि खुरासान की पहाड़ियों में मुजाहिदात में थे सरों को खम करने में अफज़लियत दिखाई और फरमाते हैं "आपका क़दम मेरे सर और आंखों पर हैं" तो ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं सय्यद ग़्यास उद्दीन (ग़रीब नवाज़ के वालिद) के साहबज़ादे ने गर्दन खम करने में सबक़त हासिल की है सो हमने उनको हिन्दुस्तान की सुलतानी अता की

📕 नफहातुल इंस,सफह 764

*16* उम्मत का इस बात पर इज्माअ है कि सरकार ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को सहाबा इकराम और ताबईन इकराम के बाद तमाम औलिया इज़ाम पर बरतरी हासिल है चाहे वो वली आपसे पहले गुज़र चुके हों या आपके बाद,अस्फहान के एक वली शेख सनआन जो कि ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के हम अस्र थे इल्मो इर्फान के ज़बरदस्त शनावर थे और करामत तो बा कसरत सरज़द होते थे,जब सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का ये फरमान उनके कानो में पहुंचा तो आप ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का मर्तबा पहचानने में धोखा खा गए और अपनी गर्दन खम नहीं की,जिस पर उसी वक़्त आपकी विलायत सल्ब हो गयी और चुंकि हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के लिए कजी उन्के दिल में आई तो ईमान भी खतरे में पड़ गया,आखिरकार एक रात हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में आजिज़ी की जिसकी बदौलत सरकारे ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने उन्हें माफ किया और फिर से उनकी विलायत बहाल की

📕 दीवान ग़ौसे आज़म,सफह 33-37

जारी रहेगा...........


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