💚🎤सवाल ⬇फुल हिन्दी में
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क्या मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) के साथ क़व्वाली गाना सुनना जाइज़ है..🎙🎷🎹🎼🎻🥁🎺
🌹بسم الله الرحمن الرحيم🌹
📚➡अल जवाब⬇फुल हिन्दी में
🌹प्यारे सुन्नी जन्नती भाईयो ये मेसेज ज़रा बड़ा है इसको पूरा ज़रूर पढ़ें इन्शा अल्लाहुररहमान आपके इल्म में बहुत इज़ाफ़ा होगा और एक बहुत बड़ी गलत फहमी के शिकार होने से बच जायेंग,
मज़हबे इस्लाम में बतौर ए लहव व लइब ढोल बाजे और मज़ामीर (Music) हमेशा से हराम रहे हैं
📚बुखारी शरीफ की हदीस शरीफ़ है के⬇
रसूलल्लाह सल्लललाहू तआला अलैही व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया⬇
ज़रूर मेरी उम्मत में ऐसे लोग होने वाले हैं जो ज़िना रेशमी कपड़ों शराब और बाजों ताशों को हलाल ठहराएंगे
📚सही बुखारी जिल्द 2 किताबुल अशरबा सफा 837 )
दूसरी हदीस शरीफ मैं हुज़ूर नबी ए करीम अलैहिस्सलातु व तस्लीम ने क़ियामत की निशानियां बयान करते हुए इरशाद फ़रमाया⬇
क़ियामत के क़रीब नाचनें गानें वालियों और बाजे ताशों की कसरत हो जायेगी
📚तिरमिज़ी शरीफ़
📚मिश्कात शरीफ़ बाब अशरातुस्सअह सफा 470)
📚फतावा आलम गीरी में है⬇
सिमाअ
क़व्वाली
रक़्स (नाच)
जो आज कल के नाम निहाद सूफीयों में राइज है ये हराम है इसमें शिरकत जाइज़ नहीं
📚फतावा आलम गीरी जिल्द 5 किताबुल कराहियह सफा 352)
मुजद्दिद ए आज़म सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िल ए बरेलवी रादियल्लाहु तआला अन्ह ने अपनी किताबों में कई जगह मज़ामीर (music) के साथ क़व्वाली गाना सुनना हराम लिखा है
देखिए 📚फतावा रज़वीयाह और 📗मलफूज़ात ए आला हज़रत,
कुछ लोग कहते हैं क़व्वाली माअ मज़ामीर (यानी म्यूज़िक)
के साथ चिश्तीयह सिलसिले में राइज और जाइज़ हैं,
ये बुज़ुर्गान ए दीन चिश्तीयह पर उनका सरीह बोहतान है
उन बुजुर्गों ने भी मज़ामीर
(यानी म्यूज़िक) के साथ क़व्वाली सुनने को हराम फ़रमाया है
सय्यदना महबूब ए इलाही हज़रत
निज़ाम उद्दीन औलिया देहेलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह ने अपने ख़ास ख़लीफा़
सय्यदना फ़ख़रुद्दीन ज़रदारी रहमातुल्लाहि तआला अलैह से मसअला ए सिमाअ
के मुताल्लिक़ एक रिसाला📗 लिखवाया जिसका नाम⬇
📗क़शफुल क़नाअ अन उसूलिस्सिमाअ है,
इस मैं साफ़ लिख़ा है⬇
हमारे बुजुर्गों का सिमाअ इस मज़ामीर (Music) के बोहतान से बरी है
उनका सिमाअ तो ये है के सिर्फ क़व्वाल की आवाज़ उन अशआर के साथ हो जो कमाल ए सिनअत ए
इलाही की खबर देते हैं,
⭐क़ुतबुल अक़ताब सय्यदना फरीदउद्दीन गंज शकर रहमातुल्लाहि तआला अलैह के मुरीद और सय्यदना महबूब ए इलाही हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया देहेलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह के ख़लीफ़ा सय्यदना मुहम्मद बिन मुबारक अल्वी किरमानी रहमातुल्लाहि तआला अलैह अपनी मशहूर किताब⬇
📗सैरुल औलिया, में तहरीर फरमाते हैं⬇
हज़रत सुल्तानुल मशाइख़ क़ुद्दसा सिर्रहू
महबूब ए इलाही ख्व़ाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहेलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह ने फ़रमाया के⬇
चन्द शराइत के साथ महफ़िल ए सिमाअ हलाल है⬇
नं.1, सुनाने वाला मर्द कामिल हो
छोटा लड़का और औरत न हो,
नं.2, सुनने वाला याद ए ख़ुदा से ग़ाफ़िल न हो
(यानी नमाज़ी परहेज़ ग़ार हो)
नं.3, जो कलाम पढ़ा जाये वो फ़हश बेहयाई और मसख़रगी न हो,
नं.4, आला ए सिमाअ यानी सारंगी मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) वरबाब से पाक हो,
📚सैरुल औलिया बाब 9. दर सिमाअ व वज्द व रक़्स. सफा 501)
इसके अलावा 📚सैरुल औलिया शरीफ़ में एक और मक़ाम पर है के⬇
एक शख्स ने हज़रत महबूब ए इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमातुल्लाहि तआला अलैह से अर्ज़ किया के इन अय्याम (दिनों में) बाअज़ आस्ताना दार दुर्वेशों ने ऐसे मजमे में जहां चंग वरबाब मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) था वहां रक़्स (यानी नाचना कूदना) किया,
तो हज़रत ने फ़रमाया के उन्होंने अच्छा काम नहीं किया जो चीज़ शराअ में नाजाइज़ है वो नापसन्दीदा है
इसके बाद किसीने बताया के जब ये जमाअत
(यानी क़व्वाली सुनने वाले लोग) बाहर आई तो लोगों ने उनसे पूछा के तुमने ये क्या किया वहां तो मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) थे
तुमने सिमाअ किस तरह सुना और रक़्स (यानी नाचना कूदना) किया
उन्होंने कहा के हम इस तरह सिमाअ में मुस्ताग़र्क़ थे के हमें ये मालूम ही नहीं हुआ के यहां मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) हैं या नहीं,
हज़रत सुल्तानुल मशाइख़ ने फ़रमाया ये कोई जवाब नहीं
इस तरह तो हर गुनाहगार हराम कार कह सकता है,
📗सैरुल औलिया, बाब 9. सफा 530)
खुलासा ये है के आदमी ज़िना करेगा और कह देगा के में बेहोश था मुझको पता नहीं के मेरी बीवी है या ग़ैर औरत,
और शराबी कहेगा के मुझे होश नहीं शराब पी या शर्बत,
मज़ीद बरआं उन्हीं हज़रत सय्यदना महबूब ए इलाही निज़ामुलहक़ वद्दीन अलैहिररहमतुह वर्रिज़वान के मलफूज़ात पर मुस्तामिल उन्हीं के मुरीद व ख़लीफा हज़रत ख़्वाजा अमीर हसन अलाई सनजरी की तसनीफ⬇
📗फवाइदुल फवाद में है⬇
हज़रत महबूब ए इलाही की ख़िदमत में एक शख़्स आया और बताया कि फ़लां जगह आपके मुरीदों ने महफ़िल की है और वहां मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) भी थे
हज़रत महबूब ए इलाही ने इस बात को पसंद नहीं फ़रमाया और फ़रमाया के मेंनें मना किया है के मज़ामीर (यानी म्यूज़िक) बाजे हराम चीज़ें वहां नहीं होना चाहिए
उन लोगों ने जो कुछ किया अच्छा नहीं किया...
इस बारे में काफी ज़िक्र फरमाते रहे उसके बाद हज़रत ने फ़रमाया के
अगर कोई किसी मक़ाम से गिरे तो शराअ में गिरेगा
और अगर कोई शराअ से गिरा तो कहां गिरेगा,
📗फवाइदुल फवाद जिल्द 3. मजलिस 5 मतबूआ उर्दू एकेडमी देहली सफा 512, तर्जमा ख़्वाजा हसन निज़ामी)
मुसलमानों ज़रा सोचो ये हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहेलवी रहमातुल्लाहि तआला अलैह का फतवा है जो तुमने ऊपर पढ़ा
इन अक़वाल के होते हुए कोई ये कह सकता है के ख़ानदान ए चिश्तीयाह में मज़ामीर
(यानी म्यूज़िक) के साथ क़व्वाली गाना सुनना जाइज़ है
हां ये बात वो लोग कहेंगे जो न चिश्ती हैं न क़ादरी
उन्हें तो मज़ेदारियां और लुत्फ अन्दोज़ियां चाहिए और अब जबके सारे के सारे क़व्वाल बे नमाज़ी और फासिक़ व फाजिर हैं
यहां तक के बाअज़ शराबी तक सुनने में आये हैं
यहां तक के औरतें और अमरद लड़के भी चल पड़े हैं
ऐसे माहौल में इन क़व्वालियों को वोही जाइज़ कहेगा जिसको इस्लाम और क़ुरआन दीन व ईमान से कोई मुहब्बत न हो और
हराम कारी बेहयाई बदकारी उसके रग व पै में सरायत कर गई हो और क़ुरआन व हदीस शरीफ़ के फ़रामीन की उसे कोई परवाह न हो क्या इसी का नाम इस्लाम पसंदी है के मुसलमान औरतों को लाखों के मजमे में लाकर उनके गाने बजाने कराए जाएं फिर उन तमाशों का नाम उर्स ए बुज़ुर्गान ए दीन रखा जाए,
कुछ लोग कहते हैं के क़व्वाली अहल के लिए जाइज़
और न अहल के लिए न जाइज़ है,
ऐसा कहने वालों से हम पूछते हैं के आज कल जो क़व्वालियों की मजालिस में जो लाखों लाख के मजमे होते हैं
क्या ये सब अहलुल्लाह और असहाब ए इस्तग़राक़ हैं
जिन्हें दुनियां व मताअ ए दुनियां का क़तअन होश नहीं
जिन्हें याद ए ख़ुदा ज़िक्र ए इलाही से एक आन की फुर्सत नहीं
ख़र्राटे की नींदों और गप्पों शप्पों में नमाज़ों को गंवा देने वाले रात दिन नंगी (सैक्सी) फिल्मों और गंदे गानों में मस्त रहने वाले
मां बाप की नाफ़रमानी करने और उनको सताने वाले
चोर डकैत झूटे फ़रेबी ग्रह काट वग़ैराह क्या सब के सब थोड़ी देर के लिए क़व्वालियों की मजलिस में शरीक होकर अल्लाह वाले हो जाते हैं
और ख़ुदा की याद में महव हो जाते हैं
या पीर साहब ने अहल का बहाना तलाश करके अपनी मौज मस्तीयों का सामान कर रखा है
के पीरी भी हाथ से न जाए और दुनियां की मौज मस्तीयों में भी कोई कमी न आए,
याद रखो क़ब्र की अंधेरी कोठरी में कोई हीला व बहाना न चलेगा,
बअज़ लोगों को ये कहते सुना गया है के मज़ामीर
(यानी म्यूज़िक)
के साथ क़व्वाली नाजाइज़ होती तो दरगाहों और ख़ानक़ाहों में क्यों होती,
काश ये लोग जानते के रसूलल्लाह सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की अहदीस और बुज़ुर्गान ए दीन के मुक़ाबले में आज कल के
फ़ुस्साक़
दाढ़ी मुंडाने वाले
नमाज़ों को क़सदन छोड़ने वाले
बअज़ ख़ानक़ाहीयों का अमल पेश करना दीन से दूरी और सख्त नादानी है
जो अहदीस हमनें ऊपर
लिखीं और बुज़ुर्गान ए दीन के अक़वाल नक़ल किये उनके मुक़ाबिल न किसी का क़ौल मअतबर होगा न अमल,
आज कल ख़ानक़ाहों में किसी काम का होना उसके जाइज़ होने की शरई दलील नहीं,
बअज़ ख़ानक़ाहीयो की ज़ुबानी ये भी सुना के हम क़व्वालियां इसलिए कराते हैं के ज्य़ादा लोग जमा हो जायें और उर्स भारी हो जाए,
ये भी सख्त नादानी है गोया आपको अपनी नामोरी की फ़िक्र है आख़ीरत की फ़िक्र नहीं आपको कोई जानता न हो
आपके पास कोई बैठता न हो आप गुम नाम हों और हराम कारीयों से बचते हों
नमाज़ों के पाबंद हों बीवी बच्चों के लिए हलाल रोज़ी कमाने में लगे हों
और आपका परवरदिगार आपसे राज़ी हो
ये हज़ार दर्जे बेहतर है
इससे के आप मशहूर ए ज़माना शख़्सियत हों आपके हज़ारों मुरीद हों
हर वक़्त हज़ारों मअतक़िदीन का झुमगटा लगा रहता हो
या लाखों के मजमे में बोलने वाले
ख़तीब व मुक़र्रिर हों
बड़े अल्लामा मौलाना शुमार किये जाते हों
लेकिन हराम कारीयों में इनहिमाक नमाज़ों से ग़फलत
शोहरत व जाह तलबी,
दौलत की नाजाइज़ हवस की वजह से मैदान ए महशर में ख़ुदा ए तआला के सामने शर्मिन्दगी हो
क़ियामत के दिन रुसवाई हो
मेरे भाईयो दिल में ये तमन्ना रखो और यही ख़ुदा ए क़दीर से दुआ
किया करो
के ख़्वाह हम मशहूर ए ज़माना पीर और दिलों में जगह बनाने वाले ख़तीब हों या न हों
लेकिन हमारा रब हमसे राज़ी हो जाए ईमान पे मौत हो जाए
और
जन्नत नसीब हो जाए,
ख़ुदा ए तआला चाहे हमें थोड़ोंं में रखे लेकिन अच्छों और सच्चों में रखे,
फ़क़ीरी और दुर्वेशी भीड़ और मजमा जुटाने का काम नहीं है
फ़क़ीर तो तन्हाई पसंद होते हैं
और भीड़ से भागने हैं
अकेले में याद ए ख़ुदा करते हैं,
🌹अशआर⬇
उनकी याद उनका तसव्वुर है उन्हीं की बातें,
कितना आबाद मेरा गोशा ए तन्हाई है,
आखिर में एक बात ये भी बता देना ज़रूरी है के रसूलल्लाह सल्लललाहू तआला अलैही व सल्लम
ने इरशाद फ़रमाया के⬇
जो कोई ख़िलाफ़ ए शराअ काम की बुनियाद डालता है तो उस पर अपना और सारे करने वालों का गुनाह होता है,
लिहाज़ा जो मज़ामीर
(यानी म्यूज़िक) के साथ क़व्वालियां कराते हैं और दूसरों को भी इसका मौक़ा देते हैं उनपर अपना क़व्वालों और लाखों तमाशाईयों का गुनाह है मरते ही उन्हें अपने काम का अंजाम देखने को मिल जाएगा,
हमारी इस तहरीर को पढ़कर हमारे इस्लामी भाई बुरा न मानें
बल्के ठंडे दिल व दिमाग से सोचें अपनी
और अपने भाईयों की इस्लाह की कोशिश करें,
अल्लाह तआला प्यारे मुस्तफा सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम के सदक़े व तुफ़ैल तमाम मुसलमानों को तमाम गुनाहों से बचने और
शरीअत ए मुस्तफा सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम पर अमल करने की तौफीक़ अता फरमाए
अमीन बिजाही सय्यीदिल मुरसलीन सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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